एलर्जी टेस्ट के माध्यम से ये पता लगाया जाता है की व्यक्ति को कौनसी एलर्जी पैदा करने वाला तत्व (Allergen) की वजह से बार बार खांसी या जुखाम होता है। हमारे एलर्जन का पता लगने पर हम उनसे बचाव का प्रयास कर सकते है व बचाव व दवाइयों से पूरा आराम नहीं मिलने पर इम्यूनोथेरपी द्वारा एलर्जी की बीमारी से हमेशा के लिए मुक्ति पा सकते है।
एलर्जी टेस्ट दो प्रकार से होता है- स्किन प्रिक टेस्ट (Skin Prick Test ) व ब्लड टेस्ट (Blood test)। किसी भी मरीज में एलर्जी टेस्ट (स्किन या ब्लड) का चुनाव डॉक्टर द्वारा मरीज के लक्षण, बीमारी की गंभीरता व मरीज की चल रही दवाओं को ध्यान में रखते हुआ किया जाता है। कई बार मरीज विज्ञापन देखकर, खुद से या अपने मित्र या मिलने वालों की सलाह पर टेस्ट करवा लेते है जिससे ठीक परिणाम हासिल नहीं हो पाते है। इसलिए, हमेशा एलर्जी विशेषज्ञ की सलाह ले कर ही एलर्जी टेस्ट का चुनाव करना चाहिए।
इसमें एक विशेष प्रकार के दर्द रहित लांसेट से एलर्जन को स्किन की परतों में प्रवेश करा कर 15 -20 मिनट बाद स्किन में होने वाले रिएक्शन को पढ़ा जाता है। एलर्जी होने पर सम्बंधित एलर्जन वाली जगह पर सूजन व खुजली होती है, बिलकुल वैसे ही जैसे मच्छर खाने के बाद होता है। ये निशान कुछ देर में ठीक हो जाते है इस प्रतिक्रिया का आकार अगर 5 मिलीमीटर से अधिक हो तो ये एलर्जी करने वाले तत्व की तरफ इशारा करता है।
इसमें आपके रक्त (Blood) का सैंपल ले कर लेबोरेटरी में टेस्ट के लिए भेजा जाता है व लेबोरेटरी में एलर्जेन के लिए IgE एंटीबाडी का लेवल देखा जाता है। इस टेस्ट में उचित टेस्ट का चुनाव महत्वपूर्ण है क्योकि रिजल्ट की सार्थकता उसी पर निर्भर करती है। इसीलिए, विश्वनीय तरीके (Immunocap) या Immunoblot से ही इस टेस्ट कराना चाहिए कुछ लैब्स एलिसा (ELISA ) मेथड से ये टेस्ट कराती है जो की विश्वसनीय नहीं होता है।
स्पाइरोमेट्री फेफड़ो की क्षमता नापने का सबसे उपयोगी टेस्ट है जिसमे व्यक्ति के शरीर में फेफड़े कितने प्रतिशत काम कर रहे है इसका पता लगाया जाता है। जयपुर एलर्जी अस्थमा सोल्युशन में स्पाइरोमेट्री टेस्ट डॉ मुकेश गुप्ता के सामने अनुभवी स्पाइरोमेट्री टेक्निशन के द्वारा किया जाता है जिसमे सबसे उपयुक्त तरीके का स्पाइरोमीटर काम में लिया जाता है।
अस्थमा में पहले स्पाइरोमेट्री (Spirometry) टेस्ट द्वारा डायग्नोसिस (Diagnosis) किया जाता है व फेफड़ों की क्षमता का पता लगाया जाता है। आवश्यक होने पर दवाई सूंघने (nebulization) के बाद फिर से किया जाता है। टेस्ट के दौरान व्यक्ति को मशीन के अंदर सांस जोर से खींचकर पूरी ताकत से बाहर छोड़ना होता है इसमें लगभग 30 से 40 मिनट का समय लगता है व कम से कम 3 बार करके सबसे बेहतर रीडिंग को नोट किया जाता है आम तौर पर 5-6 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोग इस टेस्ट को करने में सक्षम होते हैं।
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